रविवार, 27 मार्च 2011

प्रश्न - मेरी आखिरी दशा कौन सी है ?

सबसे पहले आपके लिये यह जानना जरूरी है कि दशा का मतलब क्या है ? ज्योतिष में दशा किसे कहते है और दशायें कैसे कार्य करती है ? इस जानकारी के लिये आपके लिये दशा प्रकरण का संक्षेप में वर्णन करना जरूरी है।

अधिकतर मामले में जातक के लिये चन्द्रमा से दशा का निरूपण किया जाता है जिसे साधारण रूप में विंशोत्तरी दशा के नाम से जाना जाता है,साधारण व्यक्ति को उसकी दशा और उस दशा के अन्दर चलने वाली अन्तर्दशा और अन्तर्दशा के अन्दर चलने वाली प्रतिअन्तर दशा और प्रतिअन्तर दशा के अन्दर चलने वाली प्राण दशा आदि के बारे में बखान किया जाता है। दशाओं का निरूपण करने के लिये यह जरूरी नही है कि चन्द्रमा की दशाओं से ही जातक के लिये बताया जाये कारण चन्द्रमा की दशा से जातक की मनस्थिति के बारे में जाना जाता है,सूर्य की दशा भी चन्द्रमा की तरह ही काम करती है लेकिन चन्द्रमा मन का कारक है तो सूर्य जातक के अहम का कारक है यानी जातक के अन्दर अपने अन्दर एक घमंड होता है कि वह कितने प्रकार के बल अपने अन्दर रखता है और संसार में अपने प्रदर्शन के लिये कितने रूप वह लोगों को दिखाकर अपने को प्रदर्शित करने का बल रखता है,इसी प्रकार से मंगल को जाना जाता है जैसे चन्द्रमा और सूर्य की दशा होती है उसी प्रकार से मंगल की दशा भी होती है मन्गल को जातक के पौरुष के बारे में जाना जाता है.बुध को विस्तार के लिये जाना जाता है,गुरु को जीवन की गति के लिये जाना जाता है,शुक्र को सम्पत्ति के लिये आगे के नाम को चलाने के बल के लिये जाना जाता है समय के अनुसार कार्य और सुरक्षा के लिये शनि को अचानक होने वाले कार्य चाहे वह गलत हो या सही के लिये राहु को और संसार की सहायता में आने के लिये केतु को जाना जाता है चाहे वह सहायता मारक हो या जीवन देने वाली।

एक जातिका जिसका जन्म कलकत्ता में हुआ है उसका प्रश्न है कि वह अपनी अन्तिम सांस किस दशा में लेगी। यह एक विचारणीय प्रश्न पहले है कि कोई भी जातक अपने जीवन में तरक्की के लिये धन के लिये मकान के लिये सन्तान के लिये आध्यात्मिकता के लिये आदि विषयों में पूंछने की बात जरूर करता है लेकिन अपनी आखिरी सांस के बारे में तभी जानने की कोशिश करेगा जब उसका मन इस संसार से भर गया होगा,जातक का संसार से विरक्ति लेने के लिये जो मुख्य कारण होता है वह है दिमाग में यह भाव प्रकट हो जाना कि जो कार्य जातक को करने थे वह कर लिये है और अब इस अपनी ऊपर जाने की तैयारी कर लेनी चाहिये जो भी कार्य अधूरे है उन्हे पूरा करने का समय है कि नही,अन्यथा किसी कार्य को शुरु किया और ऊपर से बुलावा आ गया तो जाना पडेगा और कार्य अधूरा रह जायेगा और आत्मा के अन्दर भट्काव रह जायेगा।

जातिका के जन्म के अनुसार कुंडली वृश्चिक लगन की है,मंगल इस लगन का स्वामी है,और मंगल का स्थान बारहवे भाव में है। राहु कुम्भ राशि का चौथे भाव मे है पंचमेश और धनेश गुरु भाग्येश चन्द्रमा के साथ छठे भाव में है,कार्येश सूर्य लाभेश और अष्टमेश बुध का बल लेकर तथा सप्तमेश और द्वादसेश शुक्र के साथ अष्टम स्थान में है। केतु कार्य भाव में विद्यमान है,हिम्मत और सुख के स्वामी शनि कन्या राशि के होकर लाभ भाव में विराजमान है। मंगल लगनेश भी है और छठे भाव के स्वामी भी है जो बारहवें भाव में है।

अक्सर कहा जाता है कि वृश्चिक राशि भौतिक राशि है,मंगल यहां जो भी फ़ल देगा वह भौतिक रूप से दिखाई देने वाला भाव देता है। बारहवा भाव कालपुरुष के अनुसार विदेश वास का भाव भी है और अन्तर्ग्यान को बताने वाला भाव भी है। मोक्ष का भाव होने से भी जाना जाता है और लोगों को मोक्ष देने वाला भाव भी जाना जाता है। चूंकि तुला राशि का मंगल जो भी शांति देता है वह मंगल के अन्दर शुक्र का प्रभाव देने के बाद और बेलेंस करने के कारकों में भी जाना जाता है। जातक को जो भी बल देता है वह शांति देने के कारकों में चाहे वे अस्पताली कारण हों,चाहे वे व्यवसायिक रूप से चलाये जाने वाले अस्पताली कारक हो। मंगल व्यवसाय के रूप में जब शामिल होता हो तो वह ठहरने के लिये बनाये जाने वाले होटलो के रूप में भी जाना जाता है,इस मंगल को वायु की राशि में होने के कारण हवाई जहाज के अन्दर कार्य करने के लिये भी माना जाता है,लेकिन मंगल का राहु के साथ सूर्य के साथ बुध के साथ शुक्र के साथ युति लेने के कारण पति परिवार में या कार्य करने के भाव में अपने बल को देने के लिये भी जाना जाता है।

गुरु जो जीव का कारक है और गुरु को जब राहु अपनी युति देगा तो जातिका के साथ शरीर को बदलने का कारण पैदा किया जाना भी माना जाता है और जब शनि गुरु के अन्दर या राहु गुरु के अन्दर या केतु गुरु के अन्दर जब षडाष्टक का योग बनता है तो जीव की हानि मानी जाती है। शनि सर्दी वाले रोगों के लिये जाना तो जाता है लेकिन कन्या राशि का शनि लम्बी बीमारी देकर शरीर की हानि के लिये माना जाता है,राहु अगर कुम्भ राशि का है तो शरीर के बल रूपी वीर्य को समाप्त करने के बाद शरीर को नष्ट करने के लिये माना जाता है,केतु को शरीर के संचालन करने वाले अंगो को निष्क्रिय करने के बाद शरीर की हानि के लिये माना जाता है।

वर्तमान में शनि गुरु को हानि देने के लिये माना जाता है,शरीर के अन्दर कार्य करने की शक्ति को दूर करने के बाद और अंगों को जडता देने के लिये भी कहा जा सकता है। लेकिन गुरु का शनि से षडाष्टक योग होने के कारण तथा केतु का मंगल को बल देने के कारण शनि का प्रभाव नही माना जा सकता है शनि बीमारी तो दे सकता है लेकिन मारक नही हो सकता है। गुरु को केतु ही अपनी गति दे सकता है,आने वाले 20th April 2012 के बाद गुरु में केतु की दशा ही शरीर हानि केवल अंगों की संचालन क्षमता का ह्रास करने के बाद मानी जा सकती है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. mere beteki janam tarikha hai 30/04/2007 birth time05.57pm place kolhapur maharashatra muze kundalike bare me janana hai bahot sare australogy ko dikha chuka hu lekin koi barabar nahi bata pa raha hai o padhai karta hai lekin uske dhyan me nahi rahata usaka naturely birth nahi hua hai sizer karke usaki janam huva hai pandit ji muze bata sakte hai to pl bata dijiye kya karna padega

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  2. mere beteki janam tarikha hai 30/04/2007 birth time05.57pm place kolhapur maharashatra muze kundalike bare me janana hai bahot sare australogy ko dikha chuka hu lekin koi barabar nahi bata pa raha hai o padhai karta hai lekin uske dhyan me nahi rahata usaka naturely birth nahi hua hai sizer karke usaki janam huva hai pandit ji muze bata sakte hai to pl bata dijiye kya karna padega

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