मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

राहु केतु की करामात

मिथुन लगन की कुंडली और केतु लगन में है,राहु का सप्तम में होना बाजिव है,चौथा शनि वक्री है,लगनेश वक्री बुध दसवे भाव में मंगल गुरु शुक्र के साथ विराजमान है,सूर्य ग्यारहवा और चन्द्र पंचम में विराजमान है। केतु का कार्य प्राप्त करना होता है और राहु का कार्य इकट्ठा करके देना होता है। राहु जिस भाव में है उस भाव के आसपास से और जहां जहां उसकी द्रिष्टि यानी स्थापित होने वाले स्थान से स्थापित होने वाले स्थान से तीसरे स्थान से पंचम स्थान से सातवें स्थान से और नवें स्थान से यह लेता है, (सातवें स्थान के केतु से यह भाव का नकारात्मक प्रभाव लेता है) और सकारात्मक रूप से यह केवल केतु को ही प्रदान करता है। केतु राहु से प्राप्त किये गये प्रभाव और कारण को अपने स्थान पर खर्च करता है तीसरे स्थान पर खर्च करता है पंचम स्थान पर खर्च करता है और नवें स्थान पर खर्च करता है। इस बात के लिये यह भी जानना आवश्यक है कि जब राहु अपने से तीसरे स्थान से पराक्रम को इकट्ठा करके केतु को देता है तो केतु बदले में उस पराक्रम के स्थान पर भाग्य की बातों को देता है। जैसे राहु ने अपने से तीसरे स्थान से व्यक्ति की कपडे पहिनने की जानकारी को इकट्ठा किया और केतु को प्रदान कर दिया,बदले में केतु ने उस तीसरे स्थान पर अपने समाज और मर्यादा के अनुरूप गुण प्रदान कर दिया यानी जातक को बजाय कपडे को ओढने के उसे सिलवा कर तरीके से पहिना दिया,उसी प्रकार से राहु ने जातक के द्वारा शिक्षा की शक्ति को लिया और केतु को प्रसारित कर दिया,केतु ने धीरे से उस शक्ति को लाभ के मामले में लेकर उसे अपने लिये साधन बना लिया और जीविकोपार्जन के लिये प्रदान करने लगा। राहु ने सप्तम के प्रभाव को जातक से लिया और वासना के रूप में केतु को प्रदान कर दिया,जातक ने अफ़ेयर और शादी विवाह के सम्बन्ध के द्वारा उस शक्ति को प्रयोग में लिया और अपने लिये आजीवन व्यस्त रहने का साधन बना लिया। राहु ने अपने से नवें भाव के प्रभाव को भाग्य के रूप में प्राप्त किया,केतु ने उस भाग्य के प्रभाव को अपनी शक्ति बनाकर समाज मे चलने के लिये योग्य बना लिया।

राहु केतु की सीमा रेखा एक दूसरे के प्रति एक सौ अस्सी डिग्री की मानी जाती है,दोनो ही छाया ग्रह है इसलिये अपनी अपनी योग्यता को स्वभाव और ज्ञान के रूप में तो प्रदर्शित करते है,लेकिन सामने नही आते है,जैसे बिजली का तार लम्बा है तो केतु का रूप देता है,चौकोर है तो मंगल केतु का रूप देता है,गोल है तो बुध केतु का रूप देता है,लचीला है तो बुध के साथ गुरु का प्रभाव भी शामिल है कठोर है तो शनि का प्रभाव भी शामिल है,उस तार का प्रयोग अगर कपडे लटकाने वाली अलगनी के रूप में लिया जाता है तो वह शक्ति की भावना को तभी तक अपने अन्दर संजोकर रखेगा जब तक कपडे के अन्दर पानी यानी चन्द्रमा की मात्रा अधिक है,अगर शनि का प्रभाव चन्द्रमा के साथ है तो केतु को अधिक समय तक बोझ को लादकर रखना पडेगा,और सूर्य का चन्द्रमा के साथ अधिक प्रभाव है तो जरा सी देर के लिये बोझ को लादना पडेगा,साथ ही मंगल का प्रभाव अधिक है तो कपडे को जला भी सकता है और खुद भी मंगल के साथ जल कर खत्म हो सकता है। लेकिन राहु का प्रभाव उस केतु के अन्दर समय के अनुसार ही बनेगा। जैसे बिजली का तार देखने में तो वह आस्तित्वहीन मालुम होगा लेकिन उसे छूते ही वह करेंट को अपने बल के द्वारा प्रदर्शित करेगा।

मिथुन राशि का बुध दसवें भाव में वक्री है,राहु से चौथा है और केतु से दसवां,साथ ही शनि वक्री होकर चौथे भाव में लगनेश से विरोधाभास का कारण भी पैदा कर रहा है। अगर यह युति प्रश्न कुंडली के अनुसार देखी जाती तो वक्री बुध के लिये यह माना जाता कि प्रश्न कर्ता कुछ भूल कर आया है और उसे वापस फ़िर से प्रश्न पूंछने के लिये आना पडेगा,यहां बुध वक्री किसी गणित की जानकारी जैसे तारीख या हिसाब किताब को खोज कर वापस आयेगा। सप्तम में शनि वक्री के लिये माना जाता है कि उसकी पत्नी या जीवन साथी नही है,कारण राहु ने दसवीं नजर से शनि वक्री को देखा है,केतु ने चौथे भाव से देखा है इसलिये पत्नी या जीवन साथी का इन्तकाल तभी हो गया होगा जब शनि वक्री हुआ होगा। केतु से दसवें भाव में लगनेश के होने से लगनेश को मानसिक चिंता केतु के लिये ही होगी। लगनेश जो भी कार्य करेगा वह केतु को ध्यान में रखकर ही करेगा।

लगनेश से सम्बन्ध रखने वाले ग्रहों में जैसे शुक्र है तो लगनेश को चिन्ता स्त्री की अपने लिये नही होगी,कारण लगनेश वक्री है कभी भी वक्री लगनेश अपने लिये चिन्ता करने वाला नही होता है उसे अपने से चौथे भाव की चिन्ता का सामना ही करना पडता है। लगनेश को चिन्ता अपने केतु के लिये शुक्र को पैदा करने की है,वह चाहता है कि उसके पुत्र की शादी हो जाये जो उसके लिये घर संभालने वाली बात को कर सके। लगनेश् से दसवें भाव में राहु के होने से पिता का भी अन्तकाल हो चुका है,और लगनेश से चौथे केतु पर शनि की दसवी नजर पडने के कारण माता का भी अन्तकाल हो गया है। केतु से पंचम में चन्द्रमा के होने से और राहु से ग्यारहवे भाव में चन्द्रमा होने से लगनेश को दो माताओं ने एक साथ पाला है,एक माता अष्टम चन्द्र होने के कारण ताई की हैसियत वाली होगी,और लगनेश से दूसरे भाव में सूर्य के होने से जातक का पिता दो भाई था लेकिन राहु का असर दूसरे भाव के सूर्य पर पडने से जातक की ताई विधवा का जीवन निकालने के समय में ही जातक के पालन पोषण के प्रति अपनी आस्था रखने वाली होगी। वक्री बुध के साथ मंगल के होने से जातक रक्षा सेवा में कार्य करने वाला होगा,लगनेश के साथ गुरु के होने से जातक का एक भाई बडा भी होगा जो चौथे केतु की करामात से अपंग रहा होगा और गुरु के साथ वक्री बुध के कारण अविवाहित ही रहा होगा,तथा लगनेश के वक्री होने से और सूर्य के बीच में गुरु के होने से वह अनदेखी के कारण चन्द्रमा के पीछे शनि होने से ठंड के कारण अन्तिम गति को प्राप्त हुआ होगा। सूर्य से तीसरे भाव में केतु के होने से जातक के पिता को लाठी या सहारा लेकर चलने की आदत भी होगी सूर्य से सप्तम में चन्द्रमा के होने से जातक की दो बुआ हमेशा पिता को सहारा देने वाली होंगी लेकिन प्रश्न के समय वे दोनो ही बुआ विधवा जीवन को निकाल रहीं होंगी। चन्द्रमा से छठे भाव में बुध के वक्री होने से दोनो बुआ अपनी अपनी कमर को झुकाकर चलने वाली होंगी और जातक की ताई भी कमर झुकाकर ही मरी होंगी। मंगल के चौथे भाव में केतु के होने से और बुध के वक्री होने से गुरु के साथ होने से जातक की पत्नी को केंसर जैसी बीमारी रही होगी,तथा एक बुआ को भी केंसर की बीमारी रही होगी। जो केंसर की बीमारी जातक के गुरु यानी गले में रही होगी तो जातक की एक बुआ को गर्भाशय जो चन्द्रमा से पंचम स्थान को वक्री शनि के द्वारा देखा जा रहा है,की बीमारी रही होगी।

लगन से सप्तम का राहु अगर धनु राशि का है तो जातक बदचलन होगा,वह अपनी मर्यादा को नही जानता होगा और उसका विश्वास नही किया जा सकता है। साथ ही जातक के जो भी सन्तान होगी वह या तो शराब आदि के कारणों मे व्यस्त होगी जो कार्य जातक के द्वारा किया जायेगा वही कार्य जातक के बडे पुत्र के द्वारा किया जायेगा,अन्य सन्तान भी राहु के असर से ग्रसित होगी या तो विक्षिप्त अवस्था में होगी या पिता का कहना नही मानती होगी। राहु ग्यारहवा चन्द्रमा जातक को भौतिक धन के रूप में खेती वाली जमीने ही इकट्ठी करने के लिये अपनी युति देगा,साथ ही केतु से दसवा मंगल रक्षा सेवा देगा मंगल बुध मिलकर एक सन्तान को मारकेटिंग में अग्रणी बनायेगा,शुक्र से सम्बन्धित होने के कारण एक सन्तान को पत्नी भक्त बनायेगा। जैसे ही गुरु चन्द्रमा के साथ गोचर करेगा जातक अपने जीवन साथी की जगह पर एक स्त्री को लाकर घर में रखेगा,जो विधवा होगी और वह जातक की ताई की भांति ही अपने जीवन को निकालेगी।


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