वृष लगन के बारे में कहा जाता है कि इस राशि का नाम बैल के स्वभाव पर बनाया गया है। ऊंचे कन्धे झूमती हुयी चाल जहाँ जाना है वहाँ जाने से कोई रोक नही सकता है,जहाँ जो खाना है वह खाने से मतलब है,बलवान से बलवान प्रतिद्वन्दी को तब तक नही छोडना जब तक कि वह मैदान छोड कर भाग नही जाये। जहाँ भी लाल रंग देखा वहीं गुस्सा का रूप तैयार आदि स्वभाव देखे जाते है। इस लगन के जातक के स्वभाव में होता है कि वह बिना जीवन साथी के रह नही सकता है। उसे सर्व सुख दे दिये जाये लेकिन वह सभी सुखों को त्याग कर अपने जीवन साथी के साथ कष्ट प्राप्त करने के बाद भी रह सकता है। बचपन मे इस लगन के जातकों का स्वभाव बहुत चंचल होता है और वे जरा सी बात पर या आहट पर अपने कान खडे कर लेते है,जहाँ भी अपने ऊपर सहारा देखा वहीं पर उछलने लगते है। अपने ही क्षेत्र मे रहना और अपने ही स्वभाव मे मस्त रहना इस लगन वाले जातक की आदत होती है। इस लगन वालों का स्वभाव खोजी होता है वह अपने प्रतिद्वन्दी की आदतों से और कार्य करने से उसके बारे में पूरी खोज रखने की कला को रखता है,जातक भले ही गरीब परिवार में पैदा हुआ हो लेकिन अपनी मेहनत से ही अपने साम्राज्य को स्थापित करता है,साथ ही पहले तो किसी भी बात पर गुस्सा नही आती है लेकिन गुस्सा आने के बाद जातक को मरने जीने की नही सूझती है। उसकी बातों में एक दूसरे की जानकारी की बातें होती है उसका चेहरा हमेशा सौम्य होता है और चेहरे से अधिक जातक अपने पैर अधिक सुन्दर रखते है। अक्सर इस लगन के जातक ठिगने कद के होते है,नाक नक्स अधिक तीखे होते है,पेट और पुट्ठे शरीर से बाहर की तरफ़ उम्र के अनुसार निकलने लगते है। एक ही परिवेश में रहना इनको अच्छा लगता है और जब इनका स्थान बदला जाता है तो अक्सर इनके साथ बीमारिया लग जाती है,जिसके साथ रहते है उसके साथ ही इनकी हमदर्दी रहती है.अधिकतर इनका स्वभाव शाकाहारी होता है और पूजा पाठ में यह अधिक ध्यान रखते है।
वृष लगन का स्वामी शुक्र है यह राशि सकारात्मक राशि है,इसका स्वभाव भौतिक साधन होने और धन सम्पत्ति के रखने के कारणों से जुडा होता है,सन्तान अधिकतर मामले में सेवा भावी होती है,जीवन साथी का स्वभाव सकारात्मक मंगल की राशि वृश्चिक के माफ़िक होता है,बात को कहने में और कार्य को करने के अन्दर जीवन साथी का रूप तीखा और उत्तेजनात्मक होता है। वृष राशि के जीवन साथी मिलते तो बडे प्रेम से है लेकिन जब दूर होते है तो उनके स्वभाव के अनुसार वे अपनी बातों से व्यवहार से बहुत दर्द देते है। यह दर्द तीखा भी हो सकता है और मीठा भी हो सकता है,जब तीखा दर्द देते है तो उनके अन्दर बदले की भावना होती है और जब मीठा दर्द होता है तो प्यार की अति समर्पित भावना होती है। वृष लगन से मंगल के स्थान से पता किया जाता है कि वह अपने जीवन साथी को इस प्रकार की भावना से देखती है।
शुक्र के तीन रूप होते है एक रूप मार्गी होता है दूसरा अस्त का माना जाता है और तीसरा रूप वक्री होता है। मार्गी शुक्र तो अपने स्वभाव के अनुसार जैसा दुनिया दारी में चलता है के अनुसार अपने फ़ल को देता जाता है,अस्त शुक्र के अन्दर सूर्य की भावना प्रकट रूप में होती है जो अपने अन्दर अहम की भावना को रखने वाला होता है और वक्री शुक्र के अन्दर जातक या जातिका अपने स्वभाव को बदलने वाले मिजाज में रखती है। अक्सर वक्री शुक्र के स्वभाव वाले जातक जीवन साथी के प्रति अधिक ध्यान नही देते है उनके द्वारा प्राप्त धन और धन के द्वारा अपनी सहूलियते आदि प्राप्त करने के मूड में रहते है,उनका व्यवहार धन की तरफ़ अधिक होता है और धन के आजाने के बाद वह अपने अनुसार सभी तरह की सुविधायें प्राप्त करने के लिये उतावले होते है। सूर्य के साथ शुक्र वक्री के होने पर वह एक ही सन्तान को जन्म देते है और वह नर सन्तान के रूप में मानी जाती है। इस शुक्र का प्रभाव अगर ग्यारहवे भाव में होता है तो जातक या जातिका के अन्दर अधिक कामुकता होती है और वह नित्य नये पुरुष स्त्रियों की तलाश में रहते है और स्त्रियां पुरुषों के सानिध्य में जाने के लिये उत्सुक रहती है,उन्हे नये रिस्ते किसी लम्बे समय के लिये बनाने की लालसा नही रहती है उनके अन्दर अधिक से अधिक धन प्राप्त करने और जायदाद आदि को बटोरने की इच्छा ही मानी जा सकती है। इस लगन का भाग्येश और कार्येश शनि वक्री होकर तीसरे भाव मे कर्क राशि का हो जाता है तो जातक या जातिका शरीर से मेहनत करने वाले नही होकर दिमाग से काम करने वाले होते है उनके अन्दर कर्क के शनि की सिफ़्त भी घर कर जाती है तथा वे कार्य करने वाले व्यक्ति को अधिक मान्यता देते है,शरीर जाति और समाज मर्यादा से उन्हे कुछ भी लेना देना नही होता है,अगर उनसे कोई इस प्रकार की बात करता है तो वे अपनी डींग हांकने के चक्कर में वह सब कुछ कह जाते है जो या तो सामने वाले को खुद चुप होकर सुनना पडता है या वह अपने आप रास्ता छोड कर दूर चला जाता है।
वक्री शनि के द्वारा शुक्र को नवम पंचम द्रिष्टि से देखने के कारण कार्य और धन के प्रति अधिक चाहत होती है,वह समय पर यानी जब भी शनि वक्री होता है और किसी भी भाव में अपना स्थान बनाये होता है तो उसे डर होता है कि उसके वैवाहिक जीवन और धन के लिये कोई बात तो नही बनने वाली होती है। वक्री शुक्र के लिए दोहरे जीवन साथी का रहना भी माना जाता है यह बात तब और सत्य होती है जब गुरु लगन में विराजमान होता है,यह युति पिता के दो भाई होने का अहसास भी दिलाता है और पिता या पिता परिवार से किसी व्यक्ति का गोद जाना भी बताता है। अगर इस लगन का धनेश बुध बारहवे भाव में होता है और किसी प्रकार से केतु से सम्पर्क स्थापित करता है तो जातक या जातिका के अन्दर जल्दी से धन कमाने के लिये बेव साइट आदि बनाने के लिये और विदेशी लोगों के लिये टिकट या यात्रा वाले साधन बनाने के लिये भी जाना जाता है। इस लगन का चन्द्रमा अगर नवे भाव में होता है तो जातिका या जातक की माता के द्वारा ही जातक या जातिका का पालन पोषण करना पडता है तथा जातिका या जातक के पिता का सम्बन्ध किसी अन्य स्त्री से भी होना माना जाता है।राहु अगर छठे भाव मे होता है तो जातिका का पति के अलावा और भी रिस्ता अन्य पुरुष से होता है वह चाहे पिता खान्दान से सम्बन्धित व्यक्ति हो या बहिन से सम्बन्धित कोई व्यक्ति। मंगल और सूर्य के बीच में अगर वक्री शुक्र है तो जातिका या जातक के लिये जीवन में एक तरफ़ पिता वाली जिम्मेदारिया और दूसरी तरफ़ पति वाले क्लेश भी जातिका केलिये दुखदायी होते है।
वृष लगन का स्वामी शुक्र है यह राशि सकारात्मक राशि है,इसका स्वभाव भौतिक साधन होने और धन सम्पत्ति के रखने के कारणों से जुडा होता है,सन्तान अधिकतर मामले में सेवा भावी होती है,जीवन साथी का स्वभाव सकारात्मक मंगल की राशि वृश्चिक के माफ़िक होता है,बात को कहने में और कार्य को करने के अन्दर जीवन साथी का रूप तीखा और उत्तेजनात्मक होता है। वृष राशि के जीवन साथी मिलते तो बडे प्रेम से है लेकिन जब दूर होते है तो उनके स्वभाव के अनुसार वे अपनी बातों से व्यवहार से बहुत दर्द देते है। यह दर्द तीखा भी हो सकता है और मीठा भी हो सकता है,जब तीखा दर्द देते है तो उनके अन्दर बदले की भावना होती है और जब मीठा दर्द होता है तो प्यार की अति समर्पित भावना होती है। वृष लगन से मंगल के स्थान से पता किया जाता है कि वह अपने जीवन साथी को इस प्रकार की भावना से देखती है।
शुक्र के तीन रूप होते है एक रूप मार्गी होता है दूसरा अस्त का माना जाता है और तीसरा रूप वक्री होता है। मार्गी शुक्र तो अपने स्वभाव के अनुसार जैसा दुनिया दारी में चलता है के अनुसार अपने फ़ल को देता जाता है,अस्त शुक्र के अन्दर सूर्य की भावना प्रकट रूप में होती है जो अपने अन्दर अहम की भावना को रखने वाला होता है और वक्री शुक्र के अन्दर जातक या जातिका अपने स्वभाव को बदलने वाले मिजाज में रखती है। अक्सर वक्री शुक्र के स्वभाव वाले जातक जीवन साथी के प्रति अधिक ध्यान नही देते है उनके द्वारा प्राप्त धन और धन के द्वारा अपनी सहूलियते आदि प्राप्त करने के मूड में रहते है,उनका व्यवहार धन की तरफ़ अधिक होता है और धन के आजाने के बाद वह अपने अनुसार सभी तरह की सुविधायें प्राप्त करने के लिये उतावले होते है। सूर्य के साथ शुक्र वक्री के होने पर वह एक ही सन्तान को जन्म देते है और वह नर सन्तान के रूप में मानी जाती है। इस शुक्र का प्रभाव अगर ग्यारहवे भाव में होता है तो जातक या जातिका के अन्दर अधिक कामुकता होती है और वह नित्य नये पुरुष स्त्रियों की तलाश में रहते है और स्त्रियां पुरुषों के सानिध्य में जाने के लिये उत्सुक रहती है,उन्हे नये रिस्ते किसी लम्बे समय के लिये बनाने की लालसा नही रहती है उनके अन्दर अधिक से अधिक धन प्राप्त करने और जायदाद आदि को बटोरने की इच्छा ही मानी जा सकती है। इस लगन का भाग्येश और कार्येश शनि वक्री होकर तीसरे भाव मे कर्क राशि का हो जाता है तो जातक या जातिका शरीर से मेहनत करने वाले नही होकर दिमाग से काम करने वाले होते है उनके अन्दर कर्क के शनि की सिफ़्त भी घर कर जाती है तथा वे कार्य करने वाले व्यक्ति को अधिक मान्यता देते है,शरीर जाति और समाज मर्यादा से उन्हे कुछ भी लेना देना नही होता है,अगर उनसे कोई इस प्रकार की बात करता है तो वे अपनी डींग हांकने के चक्कर में वह सब कुछ कह जाते है जो या तो सामने वाले को खुद चुप होकर सुनना पडता है या वह अपने आप रास्ता छोड कर दूर चला जाता है।
वक्री शनि के द्वारा शुक्र को नवम पंचम द्रिष्टि से देखने के कारण कार्य और धन के प्रति अधिक चाहत होती है,वह समय पर यानी जब भी शनि वक्री होता है और किसी भी भाव में अपना स्थान बनाये होता है तो उसे डर होता है कि उसके वैवाहिक जीवन और धन के लिये कोई बात तो नही बनने वाली होती है। वक्री शुक्र के लिए दोहरे जीवन साथी का रहना भी माना जाता है यह बात तब और सत्य होती है जब गुरु लगन में विराजमान होता है,यह युति पिता के दो भाई होने का अहसास भी दिलाता है और पिता या पिता परिवार से किसी व्यक्ति का गोद जाना भी बताता है। अगर इस लगन का धनेश बुध बारहवे भाव में होता है और किसी प्रकार से केतु से सम्पर्क स्थापित करता है तो जातक या जातिका के अन्दर जल्दी से धन कमाने के लिये बेव साइट आदि बनाने के लिये और विदेशी लोगों के लिये टिकट या यात्रा वाले साधन बनाने के लिये भी जाना जाता है। इस लगन का चन्द्रमा अगर नवे भाव में होता है तो जातिका या जातक की माता के द्वारा ही जातक या जातिका का पालन पोषण करना पडता है तथा जातिका या जातक के पिता का सम्बन्ध किसी अन्य स्त्री से भी होना माना जाता है।राहु अगर छठे भाव मे होता है तो जातिका का पति के अलावा और भी रिस्ता अन्य पुरुष से होता है वह चाहे पिता खान्दान से सम्बन्धित व्यक्ति हो या बहिन से सम्बन्धित कोई व्यक्ति। मंगल और सूर्य के बीच में अगर वक्री शुक्र है तो जातिका या जातक के लिये जीवन में एक तरफ़ पिता वाली जिम्मेदारिया और दूसरी तरफ़ पति वाले क्लेश भी जातिका केलिये दुखदायी होते है।
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