बुधवार, 20 अप्रैल 2011

लगनेश से सप्तम में गुरु वक्री तलाक का कारण

प्रस्तुत कुंडली कर्क लगन की है और लगनेश चन्द्रमा दूसरे भाव में है। गुरु लगनेश चन्द्रमा से सप्तम भाव में वक्री होकर विराजमान है। उच्च का मन्गल सप्तम मे विराजमान है। पन्चम शनि ने मन्गल को आहत किया है। पन्चम शनि के पास नवे भाव मे विराजमान राहु का असर भी है। सूर्य केतु का पूरा बल सप्तम के मन्गल को मिल रहा है। जो कारण ग्रह अपने अनुसार वैवाहिक जीवन को छिन्न भिन्न करने के लिये उत्तरदायी है वे इस प्रकार से है:-
  • गुरु सम्बन्ध का कारक है चन्द्रमा से सप्तम में विराजमान है मार्गी गुरु समानन्तर में रिस्ता चलाने के लिये माना जाता है लेकिन वक्री गुरु जल्दबाजी के कारण रिस्ता बदलने के लिये माना जाता है। मार्गी गुरु स्वार्थ भावना को लेकर नही चलता है लेकिन वक्री गुरु स्वार्थ की भावना से रिस्ता बनाता भी है और जल्दी से तोड भी देता है। बार बार मानसिक प्रभाव रिस्ते से बदलने के कारण और एक से अधिक जीवन साथी प्राप्त करने के लिये अपनी मानसिक शक्ति को समाप्त करने के कारण अक्सर वक्री गुरु पुरुष सन्तान को भी पैदा करने से असमर्थ रहता है। वर्तमान में गुरु नवे भाव में जन्म के राहु के साथ गोचर कर रहा है और राहु का असर गुरु पर आने से जीवन साथी पर कनफ़्यूजन की छाया पूरी तरह से है। गोचर के गुरु के सामने जन्म समय के सूर्य केतु भी है,जो पिता और पिता परिवार से लगातार गुप्त रूप से कमन्यूकेशन और राजनीति करने तथा गुप्त रूप से जातिका को रिमोट करने से आहत भी है.
  • पन्चम का शनि वृश्चिक राशि का है,साथ ही चन्द्रमा और लगन से सप्तमेश शनि के होने के कारण तथा शनि का शमशानी राशि में स्थापित होने के कारण जातिका के परिवार के द्वारा शादी के बाद से ही पति को नकारा समझा जाने लगा,इसके साथ ही जातक की अन्तर्बुद्धि भी परिवार के कारणों से खोजी बनी हुयी है,जातिका का समय पर भोजन नही करना शनि की सिफ़्त के कारण लगातार चिन्ता में रहना,पति पत्नी के सम्बन्ध के समय में अपने को ठंडा रखना,जननांग में इन्फ़ेक्सन की बीमारी गंदगी के कारण रहना और सन्तान के लिये या तो असमर्थ होना या भोजन के अनियमित रहने के कारण शरीर में कमजोरी होना भी माना जाता है,इसी के साथ पन्चम शनि के प्रभाव से सप्तम स्थान का आहत होना जब भी कोई घरेलू बात होना या परिवार को सम्भालने की बात होना तो गुपचुप रहना घरेलू कार्यों में वही काम करना जो परिवार से दूरिया बनाते हो,वैवाहिक जीवन को ठंडा बनाने के लिये काफ़ी होते है,शनि का लाभ भाव में भी अपने असर को देना,अर्थात रोजाना के कार्यों में सुबह से ही घरेलू चिन्ताओं का पैदा किया जाना और इन कारणों से होने वाली लाभ वाली स्थिति में दिक्कत आना भी वैवाहिक कारणों के नही चलने के लिये माना जाता है,शनि की दसवीं द्रिष्टि दूसरे भाव में चन्द्रमा पर होने से नगद धन और पति परिवार की महिलाओं से पारिवारिक बातों का बुराई के रूप में बताया जाना भी वैवाहिक कारणों को समाप्त करने के लिये काफ़ी है।
  • वक्री गुरु का सीधा नवम पन्चम का सम्बन्ध शुक्र और बुध से होने से पति के द्वारा पहले किसी अन्य स्त्री से अफ़ेयर का चलाना और बाद मे शादी करना भी एक कारण माना जा सकता है,इस प्रभाव से जो मर्यादा पत्नी की होती है वह अन्य स्त्रियों से काम सुख की प्राप्ति के बाद पति के अन्दर केवल पत्नी मौज मस्ती के लिये मानी जाती है,लेकिन जैसे जैसे पत्नी का ओज घटता जाता है पति का दिमाग पत्नी से हट्ककर दूसरी स्त्रियों की तरफ़ जाना शुरु हो जाता है,इस कारण में अक्सर सन्तान के रूप में केवल पुत्री सन्तान का होना ही माना जाता है,और पुरुष को वैवाहिक जीवन से दूर जाने के लिये यह आकांक्षा भी शामिल होती है कि वह पुत्र हीन है और उसकी पत्नी पुत्र सन्तान पैदा करने में असमर्थ है,शुक्र बुध के एक साथ तुला राशि में चौथे भाव में होने से शादी के बाद भी पति का रुझान अन्य स्त्रियों से होता है।
  • केतु का शनि को बल देना और केतु को सूर्य का बल प्राप्त होना तथा शनि का परिवार में स्थापित होना वैवाहिक जीवन को पारिवारिक न्यायालय से समाप्त करने का कारण तैयार होता है। अष्टम गुरु से दूसरे भाव में राहु के होने से पति के द्वारा बनायी गयी बातों से और झूठे कारण बनाकर अदालती कारण जातिका के लिये बनाये जाते है,राहु के द्वारा शुक्र बुध को अष्टम भाव से देखने के कारण जातिका पर चरित्र के मामले में भी झूठे कारण बनाकर लगाये जाते है.इन कारणों से चन्द्रमा जो राहु से षडाष्टक योग बनाकर विराजमान है,परिवार पर झूठे चरित्र सम्बन्धी आक्षेप सहन नही कर पाता है और विवाह विच्छेद का कारण बनना जरूरी हो जाता है.
इन कारणों को जातिका के द्वारा रोका जा सकता है। उच्च के मंगल की स्थिति के कारण जातिका को कटु वचन बोलने से बचना चाहिये। राहु के मीन राशि में होने से जातिका को जितना डर लगेगा उतना ही ससुराल खानदान उसके ऊपर सवार होगा,और एक दिन इसी डर के कारण जातिका को अपने ससुराल खानदान से दूरिया मिल जायेंगी। जातिका को ससुराल खानदान के हर कार्य में अपने को शामिल करना चाहिये,जो भी कार्य होते है उनके अन्दर अपने को शामिल करने से उसकी जरूरत परिवार में मानी जायेगी। शनि की सिफ़्त को बदलने के लिये नियमित आहार विहार और शरीर के प्रति ध्यान देना चाहिये,भूखे रहने से और अधिक सोचने से वैवाहिक जीवन तो क्या साधारण जीवन भी असम्भव है। अपने पिता परिवार से जो भी रिमोट होने की बात मिलती है उनसे उतना ही लगाव रखना चाहिये जितना एक वैवाहिक स्त्री को रखना होता है। कभी भी अपने पिता परिवार की दादागीरी को अपने पति परिवार में नही बखान करना चाहिये,कोई भी पति अपने ससुराल के सदस्यों के सामने नही झुकना पसंद करता है। अक्सर सूर्य केतु के तीसरे भाव में होने से अधिक चिन्ता करने और लगातार सोचने के कारण चेहरे पर असमय ही झुर्रियां आनी शुरु हो जाती है,इसलिये भी पति का आकर्षण खत्म होता जाता है,पति पत्नी के सम्बन्धो के समय में एक दूसरे के प्रति समर्पित भावना से रहना चाहिये। इन कारणों को तत्वों की पूर्ति से भी दूर किया जा सकता है:-
  • दैनिक दिन चर्या को बदलने के लिये सुबह जल्दी जागकर नित्य कार्यों से निपट कर कुछ समय पूजा पाठ में भी लगाना चाहिये.शक्ति की आराधना करने से भी दिमागी बल में बढोत्तरी होती है.
  • मंगल के उच्च प्रभाव को दूर करने के लिये शनि का रत्न नीलम जो सफ़ेद रंग का हो बायें हाथ की बीच वाली उंगली मे सोने में धारण करना चाहिये.
  • जो भी परिवार की गंदगियां है उन्हे अपने परिवार वालों से नही कह कर खुद के दिमाग से दूर करने की कोशिश करना चाहिये.किसी की गल्ती को आक्षेप विक्षेप से दूर नही किया जा सकता है,उन्हे दूर करने के लिये अपने को सजग रखने की जरूरत होती है.
  • परिवार में धन की जरूरत धन के ही स्थान पर होती है हर जगह पर धन को सामने नही लाना चाहिये और न ही पिता परिवार से प्राप्त वस्तुओं के प्रति अधिक मोह दिखाना चाहिये,जो भी पिता परिवार से मिला है उसे ससुराल परिवार के सदस्यों के प्रति कार्य में लेने से भी सभी लोगों के मन में जातिका के प्रति सहानुभूति बनने लगती है.
  • सूर्य केतु दांत की भी बीमारियां देता है दांतों भी बदबू मारने वाले होते है,कान भी सूखे और खुजलाने वाले होते है आंखों में भी अधिक चिन्ता करने के कारण रोशनी की कमी होने लगती है,इसलिये स्वास्थ्य के प्रति भी ध्यान देना जरूरी होता है।
मई के महिने तक ही अधिक कनफ़्यूजन है और नवम्बर तक की शारीरिक परेशानी को अधिक माना जा सकता है,पति के साथ अन्य रिस्ते को प्यार से छुटाया जा सकता है झल्ला कर या कानूनी कारण को पैदा करने के बाद गृहस्थ जीवन को बिगाडा तो जा सकता है लेकिन जीवन में पति से नफ़रत भी मिलती है.

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

अफ़ेयर वाला कनफ़्यूजन

एक जन्म कुंडली में एक जातक की भ्रम वाली स्थिति है कि वह जिसे चाहता है उसकी तरफ़ से कोई चाहत वाला सिगनल नही मिल रहा है,यानी जातक को एक तरफ़ा प्यार करने वाला कहा जाये तो कोई गलत बात नही होगी। कर्क लगन की कुंडली है,तीसरे भाव में शनि मंगल की युति है,यानी सप्तमेश शनि पंचमेश और कार्येश के साथ विराजमान है। चौथे भाव में कर्जा दुश्मनी और बीमारी के मालिक तथा भाग्य भाव के मालिक गुरु है और लगनेश चन्द्रमा भी स्थापित है। छठे भाव में केतु अपना डेरा डाले हुये है और ग्यारहवे भाव में शुक्र जो चौथे भाव का भी मालिक है और ग्यारहवे भाव का भी मालिक है के साथ तीसरे और बारहवे भाव के मालिक बुध का साथ है। बारहवे भाव में धनेश सूर्य और राहु अपना डेरा डाले हुये है।

लगनेश चन्द्रमा का साथ नौकरी के मालिक गुरु के साथ है,गुरु भी प्राइवेट व्यापार के घर में स्थापित है,गुरु के लिये अपना साथ देने वाले ग्रह धनेश सूर्य और राहु पूरी तरह से जातक के प्रति अपना असर दे रहे है। राहु भी मिथुन राशि का है इसलिये वह जातक को इन्टरनेट और टावर कमन्यूकेशन के प्रति अपनी पूरी जानकारी दे रहा है,व्यापारिक जनता से विज्ञापन आदि के द्वारा गुरु अपने प्रभाव को व्यापारिक रूप से प्रदर्शित कर रहा है। गुरु रिस्ते का कारक भी है जो तुला राशि में बैठ कर चन्द्रमा को साथ लेकर रिस्ते को भी व्यापारिक रूप से परखने की कोशिश कर रहा है। मंगल शनि तीसरे भाव में बैठ कर कार्य के लिये तकनीकी बुद्धि को प्रदान कर रहे है,वह बुद्धि या तो मीडिया के प्रति जानी जाती है या फ़िर दवाइयों के प्रति अपनी जिज्ञासा को प्रदर्शित करती है,यह कार्य एम आर के रूप में भी जाना जा सकता है और धन आदि के प्रति अपनी कार्य योजना को तकनीकी रूप से परखने की कला में जाना जाता है।

जातक के लिये अगर देखा जाये तो वह केवल केतु के रूप में अपनी औकात को जाहिर करता है,यानी सन्स्थान में कार्य करने के लिये एक हेल्पर का रूप मिलता है। उसके कार्य करने के स्थान के मामले में मीडिया या पबलिसिन्ग का कार्य करने वाले लोगों के प्रति दो महिलाओं के बीच से गुजर कर जाना पडता है। दोनो महिलायें जो बुध और शुक्र के रूप में ग्यारहवे भाव मे अपना असर रखती है जातक के लिये कार्य करवाने के लिये अर्थपूर्ण बातों से काम करवाने की कला को जानती है। लेकिन जातक को यही समझ में आता है कि वे महिलायें उससे प्रेम से बोलने के कारण उससे प्यार करती है।

राहु जब गुरु को भ्रम में डालता है तो जातक के अन्दर बहुत से कनफ़्यूजन पैदा हो जाते है,उसके सोचने का ढंग बहुत ही अजीब हो जाता है,वह किसी भी बात को बहुत से कारणों से सोचने के लिये मजबूर हो जाता है। उसे बहुत अच्छी तरह से पता होता है कि वह भावनात्मक असर के कारणों में अपने को फ़ंसा कर बैठा है और उसे केवल यहां से छल ही मिलेगा लेकिन वह अपने स्वप्न को टूटने नही देने के कारण अपनी अच्छी आंखों पर भी पट्टी तान कर सोने की कोशिश करता है।

कन्या लगन का सप्तम भाव

कालपुरुष के अनुसार कन्या लगन छठे भाव की राशि है इस राशि से बुध के सकारात्मक होने का भान मिलता है। कन्या लगन की सहयोगी राशियां वृष और मकर होती है,कन्या का त्रिकोण इन्ही तीन राशियों के लिये अपना आस्तित्व बताता है। धन के लिये शरीर पेट के लिये रोजाना की मेहनत और भाग्य के लिये हमेशा के लिये किये जाने वाले कार्य इन तीनो भावों से एक साथ जुडे माने जाते है। इस लगन के लिये कर्क वृश्चिक और मीन राशि के प्रति जीवन भर के लिये लगाव माना जाता है,कर्क राशि का प्रभाव अपने को समाज में दिखाने के लिये मीन राशि का प्रभाव जीवन साथी और साझेदारी की बातों के लिये और वृश्चिक राशि का प्रभाव लाभ और दोस्ती के लिये माना जाता है। इस राशि के लिये सप्तम की राशि मीन है। मीन राशि और उसके स्वामी गुरु के अनुसार ही जीवन साथी के लिये माना जाता है।

कन्या लगन के लिये जीवन साथी का कारक गुरु है। गुरु की स्थिति के अनुसार ही शादी विवाह और जीवन साथी के प्रभाव को जाना जाता है। गुरु का स्थान अगर दसवे भाव में होता है तो गुरु का स्थान मिथुन राशि में माना जाता है,मिथुन राशि का गुरु कमन्यूकेशन के कार्यों मे अपनी अच्छी पकड रखता है और बडे संस्थानों को सम्भालने के लिये माना जाता है। अगर कन्या लगन के सप्तम मे सूर्य होता है तो दोहरे जीवन साथी के लिये अपना प्रभाव देता है,बुध होता है तो दो स्त्री के लिये सौत और पुरुष के लिये द्विपति वाली स्थिति को समझा जाता है,चन्द्रमा होता है तो पति के स्थान पर केवल छल किया जाना ही मिलता है। चन्द्रमा के होने पर जीवन साथी अपने कार्यों और व्यवहार से केवल छल करता है और जीवन साथी के परिवार वाले जैसे पिता और माता अपने अनुसार पति को चलाने की बात करते है। अगर किसी प्रकार से राहु गुरु को बल देता है तो पति के सामने तमाम तरह के कनफ़्यूजन सामने होते है और समय के आने पर पति अपने ही परिवार को सम्भालने का कार्य करता है और पति के स्थान पर केवल पिछली यादों के सहारे जातिका को अपना जीवन जीना पडता है। सन्तान का कारक शनि है और शनि ही कर्जा दुश्मनी बीमारी का मालिक है,अगर शनि का स्थान पंचम भाव में है तो जीवन साथी के प्रति और लाभ के कामो के साथ खुद के परिवार के प्रति भी अन्धेरा माना जाता है। जातिका या जातक अपने लिये सुरक्षा के प्रति हमेशा चिंतित रहता है.शनि के साथ मंगल होता है तो जातिका या जातक का स्वभाव कार्य के मामले में तेज होताहै उसे कटु बोलना आता है,वह किसी भी कार्य को मन लगाकर करने वाला होता है और कार्य के दौरान अधिकारियों से नही बनती है,साथ ही आक्षेप भी लगाये जाते है। शनि के साथ राहु के होने से भी जातक के जीवन में कभी तो कार्य बहुत होते है और कभी कार्य बिलकुल नही होते है,इसके साथ जातक या जातिका को प्रेम प्रसंग के मामले मे फ़ोटो ग्राफ़ी और खेल कूद को देखने खेलने और जोखिम वाले काम करने की आदत होती है। शनि के साथ शुक्र के होने से जातक या जातिका के पास भौतिक साधनों की भरमार होती है जो भी घर और बाहर के कार्य होते है उनके लिये भौतिक साधन आराम से मिल जाते है लेकिन उम्र की बयालीसवीं साल तक चिन्ता से छुटकारा नही मिलता है।

वृष लगन और वक्री शुक्र

वृष लगन के बारे में कहा जाता है कि इस राशि का नाम बैल के स्वभाव पर बनाया गया है। ऊंचे कन्धे झूमती हुयी चाल जहाँ जाना है वहाँ जाने से कोई रोक नही सकता है,जहाँ जो खाना है वह खाने से मतलब है,बलवान से बलवान प्रतिद्वन्दी को तब तक नही छोडना जब तक कि वह मैदान छोड कर भाग नही जाये। जहाँ भी लाल रंग देखा वहीं गुस्सा का रूप तैयार आदि स्वभाव देखे जाते है। इस लगन के जातक के स्वभाव में होता है कि वह बिना जीवन साथी के रह नही सकता है। उसे सर्व सुख दे दिये जाये लेकिन वह सभी सुखों को त्याग कर अपने जीवन साथी के साथ कष्ट प्राप्त करने के बाद भी रह सकता है। बचपन मे इस लगन के जातकों का स्वभाव बहुत चंचल होता है और वे जरा सी बात पर या आहट पर अपने कान खडे कर लेते है,जहाँ भी अपने ऊपर सहारा देखा वहीं पर उछलने लगते है। अपने ही क्षेत्र मे रहना और अपने ही स्वभाव मे मस्त रहना इस लगन वाले जातक की आदत होती है। इस लगन वालों का स्वभाव खोजी होता है वह अपने प्रतिद्वन्दी की आदतों से और कार्य करने से उसके बारे में पूरी खोज रखने की कला को रखता है,जातक भले ही गरीब परिवार में पैदा हुआ हो लेकिन अपनी मेहनत से ही अपने साम्राज्य को स्थापित करता है,साथ ही पहले तो किसी भी बात पर गुस्सा नही आती है लेकिन गुस्सा आने के बाद जातक को मरने जीने की नही सूझती है। उसकी बातों में एक दूसरे की जानकारी की बातें होती है उसका चेहरा हमेशा सौम्य होता है और चेहरे से अधिक जातक अपने पैर अधिक सुन्दर रखते है। अक्सर इस लगन के जातक ठिगने कद के होते है,नाक नक्स अधिक तीखे होते है,पेट और पुट्ठे शरीर से बाहर की तरफ़ उम्र के अनुसार निकलने लगते है। एक ही परिवेश में रहना इनको अच्छा लगता है और जब इनका स्थान बदला जाता है तो अक्सर इनके साथ बीमारिया लग जाती है,जिसके साथ रहते है उसके साथ ही इनकी हमदर्दी रहती है.अधिकतर इनका स्वभाव शाकाहारी होता है और पूजा पाठ में यह अधिक ध्यान रखते है।

वृष लगन का स्वामी शुक्र है यह राशि सकारात्मक राशि है,इसका स्वभाव भौतिक साधन होने और धन सम्पत्ति के रखने के कारणों से जुडा होता है,सन्तान अधिकतर मामले में सेवा भावी होती है,जीवन साथी का स्वभाव सकारात्मक मंगल की राशि वृश्चिक के माफ़िक होता है,बात को कहने में और कार्य को करने के अन्दर जीवन साथी का रूप तीखा और उत्तेजनात्मक होता है। वृष राशि के जीवन साथी मिलते तो बडे प्रेम से है लेकिन जब दूर होते है तो उनके स्वभाव के अनुसार वे अपनी बातों से व्यवहार से बहुत दर्द देते है। यह दर्द तीखा भी हो सकता है और मीठा भी हो सकता है,जब तीखा दर्द देते है तो उनके अन्दर बदले की भावना होती है और जब मीठा दर्द होता है तो प्यार की अति समर्पित भावना होती है। वृष लगन से मंगल के स्थान से पता किया जाता है कि वह अपने जीवन साथी को इस प्रकार की भावना से देखती है।

शुक्र के तीन रूप होते है एक रूप मार्गी होता है दूसरा अस्त का माना जाता है और तीसरा रूप वक्री होता है। मार्गी शुक्र तो अपने स्वभाव के अनुसार जैसा दुनिया दारी में चलता है के अनुसार अपने फ़ल को देता जाता है,अस्त शुक्र के अन्दर सूर्य की भावना प्रकट रूप में होती है जो अपने अन्दर अहम की भावना को रखने वाला होता है और वक्री शुक्र के अन्दर जातक या जातिका अपने स्वभाव को बदलने वाले मिजाज में रखती है। अक्सर वक्री शुक्र के स्वभाव वाले जातक जीवन साथी के प्रति अधिक ध्यान नही देते है उनके द्वारा प्राप्त धन और धन के द्वारा अपनी सहूलियते आदि प्राप्त करने के मूड में रहते है,उनका व्यवहार धन की तरफ़ अधिक होता है और धन के आजाने के बाद वह अपने अनुसार सभी तरह की सुविधायें प्राप्त करने के लिये उतावले होते है। सूर्य के साथ शुक्र वक्री के होने पर वह एक ही सन्तान को जन्म देते है और वह नर सन्तान के रूप में मानी जाती है। इस शुक्र का प्रभाव अगर ग्यारहवे भाव में होता है तो जातक या जातिका के अन्दर अधिक कामुकता होती है और वह नित्य नये पुरुष स्त्रियों की तलाश में रहते है और स्त्रियां पुरुषों के सानिध्य में जाने के लिये उत्सुक रहती है,उन्हे नये रिस्ते किसी लम्बे समय के लिये बनाने की लालसा नही रहती है उनके अन्दर अधिक से अधिक धन प्राप्त करने और जायदाद आदि को बटोरने की इच्छा ही मानी जा सकती है। इस लगन का भाग्येश और कार्येश शनि वक्री होकर तीसरे भाव मे कर्क राशि का हो जाता है तो जातक या जातिका शरीर से मेहनत करने वाले नही होकर दिमाग से काम करने वाले होते है उनके अन्दर कर्क के शनि की सिफ़्त भी घर कर जाती है तथा वे कार्य करने वाले व्यक्ति को अधिक मान्यता देते है,शरीर जाति और समाज मर्यादा से उन्हे कुछ भी लेना देना नही होता है,अगर उनसे कोई इस प्रकार की बात करता है तो वे अपनी डींग हांकने के चक्कर में वह सब कुछ कह जाते है जो या तो सामने वाले को खुद चुप होकर सुनना पडता है या वह अपने आप रास्ता छोड कर दूर चला जाता है।

वक्री शनि के द्वारा शुक्र को नवम पंचम द्रिष्टि से देखने के कारण कार्य और धन के प्रति अधिक चाहत होती है,वह समय पर यानी जब भी शनि वक्री होता है और किसी भी भाव में अपना स्थान बनाये होता है तो उसे डर होता है कि उसके वैवाहिक जीवन और धन के लिये कोई बात तो नही बनने वाली होती है। वक्री शुक्र के लिए दोहरे जीवन साथी का रहना भी माना जाता है यह बात तब और सत्य होती है जब गुरु लगन में विराजमान होता है,यह युति पिता के दो भाई होने का अहसास भी दिलाता है और पिता या पिता परिवार से किसी व्यक्ति का गोद जाना भी बताता है। अगर इस लगन का धनेश बुध बारहवे भाव में होता है और किसी प्रकार से केतु से सम्पर्क स्थापित करता है तो जातक या जातिका के अन्दर जल्दी से धन कमाने के लिये बेव साइट आदि बनाने के लिये और विदेशी लोगों के लिये टिकट या यात्रा वाले साधन बनाने के लिये भी जाना जाता है। इस लगन का चन्द्रमा अगर नवे भाव में होता है तो जातिका या जातक की माता के द्वारा ही जातक या जातिका का पालन पोषण करना पडता है तथा जातिका या जातक के पिता का सम्बन्ध किसी अन्य स्त्री से भी होना माना जाता है।राहु अगर छठे भाव मे होता है तो जातिका का पति के अलावा और भी रिस्ता अन्य पुरुष से होता है वह चाहे पिता खान्दान से सम्बन्धित व्यक्ति हो या बहिन से सम्बन्धित कोई व्यक्ति। मंगल और सूर्य के बीच में अगर वक्री शुक्र है तो जातिका या जातक के लिये जीवन में एक तरफ़ पिता वाली जिम्मेदारिया और दूसरी तरफ़ पति वाले क्लेश भी जातिका केलिये दुखदायी होते है।

राहु केतु की करामात

मिथुन लगन की कुंडली और केतु लगन में है,राहु का सप्तम में होना बाजिव है,चौथा शनि वक्री है,लगनेश वक्री बुध दसवे भाव में मंगल गुरु शुक्र के साथ विराजमान है,सूर्य ग्यारहवा और चन्द्र पंचम में विराजमान है। केतु का कार्य प्राप्त करना होता है और राहु का कार्य इकट्ठा करके देना होता है। राहु जिस भाव में है उस भाव के आसपास से और जहां जहां उसकी द्रिष्टि यानी स्थापित होने वाले स्थान से स्थापित होने वाले स्थान से तीसरे स्थान से पंचम स्थान से सातवें स्थान से और नवें स्थान से यह लेता है, (सातवें स्थान के केतु से यह भाव का नकारात्मक प्रभाव लेता है) और सकारात्मक रूप से यह केवल केतु को ही प्रदान करता है। केतु राहु से प्राप्त किये गये प्रभाव और कारण को अपने स्थान पर खर्च करता है तीसरे स्थान पर खर्च करता है पंचम स्थान पर खर्च करता है और नवें स्थान पर खर्च करता है। इस बात के लिये यह भी जानना आवश्यक है कि जब राहु अपने से तीसरे स्थान से पराक्रम को इकट्ठा करके केतु को देता है तो केतु बदले में उस पराक्रम के स्थान पर भाग्य की बातों को देता है। जैसे राहु ने अपने से तीसरे स्थान से व्यक्ति की कपडे पहिनने की जानकारी को इकट्ठा किया और केतु को प्रदान कर दिया,बदले में केतु ने उस तीसरे स्थान पर अपने समाज और मर्यादा के अनुरूप गुण प्रदान कर दिया यानी जातक को बजाय कपडे को ओढने के उसे सिलवा कर तरीके से पहिना दिया,उसी प्रकार से राहु ने जातक के द्वारा शिक्षा की शक्ति को लिया और केतु को प्रसारित कर दिया,केतु ने धीरे से उस शक्ति को लाभ के मामले में लेकर उसे अपने लिये साधन बना लिया और जीविकोपार्जन के लिये प्रदान करने लगा। राहु ने सप्तम के प्रभाव को जातक से लिया और वासना के रूप में केतु को प्रदान कर दिया,जातक ने अफ़ेयर और शादी विवाह के सम्बन्ध के द्वारा उस शक्ति को प्रयोग में लिया और अपने लिये आजीवन व्यस्त रहने का साधन बना लिया। राहु ने अपने से नवें भाव के प्रभाव को भाग्य के रूप में प्राप्त किया,केतु ने उस भाग्य के प्रभाव को अपनी शक्ति बनाकर समाज मे चलने के लिये योग्य बना लिया।

राहु केतु की सीमा रेखा एक दूसरे के प्रति एक सौ अस्सी डिग्री की मानी जाती है,दोनो ही छाया ग्रह है इसलिये अपनी अपनी योग्यता को स्वभाव और ज्ञान के रूप में तो प्रदर्शित करते है,लेकिन सामने नही आते है,जैसे बिजली का तार लम्बा है तो केतु का रूप देता है,चौकोर है तो मंगल केतु का रूप देता है,गोल है तो बुध केतु का रूप देता है,लचीला है तो बुध के साथ गुरु का प्रभाव भी शामिल है कठोर है तो शनि का प्रभाव भी शामिल है,उस तार का प्रयोग अगर कपडे लटकाने वाली अलगनी के रूप में लिया जाता है तो वह शक्ति की भावना को तभी तक अपने अन्दर संजोकर रखेगा जब तक कपडे के अन्दर पानी यानी चन्द्रमा की मात्रा अधिक है,अगर शनि का प्रभाव चन्द्रमा के साथ है तो केतु को अधिक समय तक बोझ को लादकर रखना पडेगा,और सूर्य का चन्द्रमा के साथ अधिक प्रभाव है तो जरा सी देर के लिये बोझ को लादना पडेगा,साथ ही मंगल का प्रभाव अधिक है तो कपडे को जला भी सकता है और खुद भी मंगल के साथ जल कर खत्म हो सकता है। लेकिन राहु का प्रभाव उस केतु के अन्दर समय के अनुसार ही बनेगा। जैसे बिजली का तार देखने में तो वह आस्तित्वहीन मालुम होगा लेकिन उसे छूते ही वह करेंट को अपने बल के द्वारा प्रदर्शित करेगा।

मिथुन राशि का बुध दसवें भाव में वक्री है,राहु से चौथा है और केतु से दसवां,साथ ही शनि वक्री होकर चौथे भाव में लगनेश से विरोधाभास का कारण भी पैदा कर रहा है। अगर यह युति प्रश्न कुंडली के अनुसार देखी जाती तो वक्री बुध के लिये यह माना जाता कि प्रश्न कर्ता कुछ भूल कर आया है और उसे वापस फ़िर से प्रश्न पूंछने के लिये आना पडेगा,यहां बुध वक्री किसी गणित की जानकारी जैसे तारीख या हिसाब किताब को खोज कर वापस आयेगा। सप्तम में शनि वक्री के लिये माना जाता है कि उसकी पत्नी या जीवन साथी नही है,कारण राहु ने दसवीं नजर से शनि वक्री को देखा है,केतु ने चौथे भाव से देखा है इसलिये पत्नी या जीवन साथी का इन्तकाल तभी हो गया होगा जब शनि वक्री हुआ होगा। केतु से दसवें भाव में लगनेश के होने से लगनेश को मानसिक चिंता केतु के लिये ही होगी। लगनेश जो भी कार्य करेगा वह केतु को ध्यान में रखकर ही करेगा।

लगनेश से सम्बन्ध रखने वाले ग्रहों में जैसे शुक्र है तो लगनेश को चिन्ता स्त्री की अपने लिये नही होगी,कारण लगनेश वक्री है कभी भी वक्री लगनेश अपने लिये चिन्ता करने वाला नही होता है उसे अपने से चौथे भाव की चिन्ता का सामना ही करना पडता है। लगनेश को चिन्ता अपने केतु के लिये शुक्र को पैदा करने की है,वह चाहता है कि उसके पुत्र की शादी हो जाये जो उसके लिये घर संभालने वाली बात को कर सके। लगनेश् से दसवें भाव में राहु के होने से पिता का भी अन्तकाल हो चुका है,और लगनेश से चौथे केतु पर शनि की दसवी नजर पडने के कारण माता का भी अन्तकाल हो गया है। केतु से पंचम में चन्द्रमा के होने से और राहु से ग्यारहवे भाव में चन्द्रमा होने से लगनेश को दो माताओं ने एक साथ पाला है,एक माता अष्टम चन्द्र होने के कारण ताई की हैसियत वाली होगी,और लगनेश से दूसरे भाव में सूर्य के होने से जातक का पिता दो भाई था लेकिन राहु का असर दूसरे भाव के सूर्य पर पडने से जातक की ताई विधवा का जीवन निकालने के समय में ही जातक के पालन पोषण के प्रति अपनी आस्था रखने वाली होगी। वक्री बुध के साथ मंगल के होने से जातक रक्षा सेवा में कार्य करने वाला होगा,लगनेश के साथ गुरु के होने से जातक का एक भाई बडा भी होगा जो चौथे केतु की करामात से अपंग रहा होगा और गुरु के साथ वक्री बुध के कारण अविवाहित ही रहा होगा,तथा लगनेश के वक्री होने से और सूर्य के बीच में गुरु के होने से वह अनदेखी के कारण चन्द्रमा के पीछे शनि होने से ठंड के कारण अन्तिम गति को प्राप्त हुआ होगा। सूर्य से तीसरे भाव में केतु के होने से जातक के पिता को लाठी या सहारा लेकर चलने की आदत भी होगी सूर्य से सप्तम में चन्द्रमा के होने से जातक की दो बुआ हमेशा पिता को सहारा देने वाली होंगी लेकिन प्रश्न के समय वे दोनो ही बुआ विधवा जीवन को निकाल रहीं होंगी। चन्द्रमा से छठे भाव में बुध के वक्री होने से दोनो बुआ अपनी अपनी कमर को झुकाकर चलने वाली होंगी और जातक की ताई भी कमर झुकाकर ही मरी होंगी। मंगल के चौथे भाव में केतु के होने से और बुध के वक्री होने से गुरु के साथ होने से जातक की पत्नी को केंसर जैसी बीमारी रही होगी,तथा एक बुआ को भी केंसर की बीमारी रही होगी। जो केंसर की बीमारी जातक के गुरु यानी गले में रही होगी तो जातक की एक बुआ को गर्भाशय जो चन्द्रमा से पंचम स्थान को वक्री शनि के द्वारा देखा जा रहा है,की बीमारी रही होगी।

लगन से सप्तम का राहु अगर धनु राशि का है तो जातक बदचलन होगा,वह अपनी मर्यादा को नही जानता होगा और उसका विश्वास नही किया जा सकता है। साथ ही जातक के जो भी सन्तान होगी वह या तो शराब आदि के कारणों मे व्यस्त होगी जो कार्य जातक के द्वारा किया जायेगा वही कार्य जातक के बडे पुत्र के द्वारा किया जायेगा,अन्य सन्तान भी राहु के असर से ग्रसित होगी या तो विक्षिप्त अवस्था में होगी या पिता का कहना नही मानती होगी। राहु ग्यारहवा चन्द्रमा जातक को भौतिक धन के रूप में खेती वाली जमीने ही इकट्ठी करने के लिये अपनी युति देगा,साथ ही केतु से दसवा मंगल रक्षा सेवा देगा मंगल बुध मिलकर एक सन्तान को मारकेटिंग में अग्रणी बनायेगा,शुक्र से सम्बन्धित होने के कारण एक सन्तान को पत्नी भक्त बनायेगा। जैसे ही गुरु चन्द्रमा के साथ गोचर करेगा जातक अपने जीवन साथी की जगह पर एक स्त्री को लाकर घर में रखेगा,जो विधवा होगी और वह जातक की ताई की भांति ही अपने जीवन को निकालेगी।


राहु शनि

प्राचीन ग्रामीण कहावतें भी ज्योतिष से अपना सम्बन्ध रखने वाली मानी जाती थी,जिनके गूढ अर्थ को अगर समझा जाये तो वे अपने अपने अनुसार बहुत ही सुन्दर कथन और जीवन के प्रति सावधानी को उजागर करती थी। इसी प्रकार से एक कहावत इस प्रकार से कही जाती है-
"मंगल मगरी,बुद्ध खाट,शुक्र झाडू बारहबाट,
शनि कल्छुली रवि कपाट,सोम की लाठी फ़ोरे टांट",
यह कहावत भदावर से लेकर चौहानी तक कही जाती है। इसे अगर समझा जाये तो मंगलवार को राहु का कार्य घर में छावन के रूप में चाहे वह छप्पर के लिये हो या छत बनाने के लिये हो,किसी प्रकार से टेंट आदि लगाकर किये जाने वाले कार्यों से हो या छाया बनाने वाले साधनों से हो वह हमेशा दुखदायी होती है। शुक्रवार को राहु के रूप में झाडू अगर लाई जाये,तो वह घर में जो भी है उसे साफ़ करती चली जाती है। शनिवार के दिन लोहे का सामान जो रसोई में काम आता है लाने से वह कोई न कोई बीमारी लाता ही रहता है,रविवार को मकान दुकान या किसी प्रकार के रक्षात्मक उपकरण जो किवाड गेट आदि के रूप में लगाये जाते है वे किसी न किसी कारण से धोखा देने वाले होते है,सोमवार को लाया गया हथियार अपने लिये ही सामत लाने वाला होता है। शनि राहु की युति के लिये भी कई बाते मानी जाती है,शनि राहु अगर अपनी युति बनाकर लगन में विराजमान है और लगनेश से सम्बन्ध रखता है तो व्यक्ति एक शरीर से कई कार्य एक बार में ही निपटाने की क्षमता रखता है। वह अच्छे कार्यों को भी करना जानता है और बुरे कामों को भी करने वाला होता है,वह जाति के प्रति भी कार्य करता है और कुजाति के प्रति भी कार्य करता है। वह कभी तो आदर्शवादी की श्रेणी में अपनी योग्यता को रखता है तो कभी बेहद गंदे व्यक्ति के रूप में समाज में अपने को प्रस्तुत करता है। यह प्रभाव उम्र के दो तिहाई समय तक ही प्रभावी रहता है.शनि की सिफ़्त को समझने के लिये ’कार्य’ का रूप देखा जाता है और राहु से लगन मे सफ़ाई कर्मचारी के रूप मे भी देखा जाता है तो लगन से दाढी वाले व्यक्ति से भी देखा जाता है।

राहु का प्रभाव शनि के साथ लगन में होता है तो वह पन्चम भाव और नवम भाव को भी प्रभावित करता है,इसी प्रकार से अगर दूसरे भाव मे होता है तो छठे भाव और दसवे भाव को भी प्रभावित करता है,तीसरे भाव में होता है तो सातवें और ग्यारहवे भाव में भी प्रभावकारी होता है,चौथे भाव में होता है तो वह आठवें और बारहवें भाव को भी प्रभावित करता है।

लगन में राहु का प्रभाव शनि के साथ होने से जातक की दाढी भी लम्बी और काली होगी तो उसके पेट में भी बाल लम्बे और घने होंगे तथा उसके पेडू और पैरों में भी बालों का घना होना माना जाता है। शनि से चालाकी को अगर माना जाये तो उसके पिता भी झूठ आदि का सहारा लेने वाले होंगे आगे आने वाले उसके बच्चे भी झूठ आदि का सहारा ले सकते है। लेकिन यह शर्त पौत्र आदि पर लागू नही होती है।

मंगल के साथ शनि राहु का असर होने से जातक के खून के सम्बन्ध पर भी असरकारक होता है। शनि राहु से मंगल अगर चौथे भाव में है तो वह जातक को कसाई जैसे कार्य करने के लिये बाध्य करता है,शनि से कर्म और राहु से तेज हथियार तथा चौथे मंगल से खून का बहाना आदि। अगर मंगल शनि राहु से दूसरे भाव में है तो जातक को धन और भोजन आदि के लिये किसी न किसी प्रकार से झूठ का सहारा लेना पडता है जातक के अन्दर तकनीकी रूप से तंत्र आदि के प्रति जानकारी होती है और अपने कार्यों में वह तर्क वितर्क द्वारा लोगों को ठगने का काम भी कर सकता है। तीसरे भाव में मंगल के होने से जातक के अन्दर लडाई झगडे के प्रति लालसा अधिक होगी वह आंधी तूफ़ान की तरह लडाई झगडे में अपने को सामने करेगा और जो भी करना है वह पलक झपकते ही कर जायेगा। पंचम भाव में मंगल के होने से जातक के अन्दर दया का असर नही होगा वह किसी भी प्रकार से तामसी कारणो को दिमाग में रखकर चलेगा और जल्दी से धन प्राप्त करने के लिये खेल आदि का सहारा ले सकता है किसी भी अफ़ेयर आदि के द्वारा वह केवल अपने लिये धन प्राप्त करने की इच्छा करेगा। छठे भाव मे मंगल के होने से जातक के अन्दर डाक्टरी कारण बनते रहेंगे या तो वह शरीर वाली बीमारियों के प्रति जानकारी रखता होगा या अपने को अस्पताल में हमेशा जाने के लिये किसी न किसी रोग को पाले रहेगा। इसी प्रकार से अन्य भावों के लिये जाना जा सकता है.