बुधवार, 20 अप्रैल 2011

लगनेश से सप्तम में गुरु वक्री तलाक का कारण

प्रस्तुत कुंडली कर्क लगन की है और लगनेश चन्द्रमा दूसरे भाव में है। गुरु लगनेश चन्द्रमा से सप्तम भाव में वक्री होकर विराजमान है। उच्च का मन्गल सप्तम मे विराजमान है। पन्चम शनि ने मन्गल को आहत किया है। पन्चम शनि के पास नवे भाव मे विराजमान राहु का असर भी है। सूर्य केतु का पूरा बल सप्तम के मन्गल को मिल रहा है। जो कारण ग्रह अपने अनुसार वैवाहिक जीवन को छिन्न भिन्न करने के लिये उत्तरदायी है वे इस प्रकार से है:-
  • गुरु सम्बन्ध का कारक है चन्द्रमा से सप्तम में विराजमान है मार्गी गुरु समानन्तर में रिस्ता चलाने के लिये माना जाता है लेकिन वक्री गुरु जल्दबाजी के कारण रिस्ता बदलने के लिये माना जाता है। मार्गी गुरु स्वार्थ भावना को लेकर नही चलता है लेकिन वक्री गुरु स्वार्थ की भावना से रिस्ता बनाता भी है और जल्दी से तोड भी देता है। बार बार मानसिक प्रभाव रिस्ते से बदलने के कारण और एक से अधिक जीवन साथी प्राप्त करने के लिये अपनी मानसिक शक्ति को समाप्त करने के कारण अक्सर वक्री गुरु पुरुष सन्तान को भी पैदा करने से असमर्थ रहता है। वर्तमान में गुरु नवे भाव में जन्म के राहु के साथ गोचर कर रहा है और राहु का असर गुरु पर आने से जीवन साथी पर कनफ़्यूजन की छाया पूरी तरह से है। गोचर के गुरु के सामने जन्म समय के सूर्य केतु भी है,जो पिता और पिता परिवार से लगातार गुप्त रूप से कमन्यूकेशन और राजनीति करने तथा गुप्त रूप से जातिका को रिमोट करने से आहत भी है.
  • पन्चम का शनि वृश्चिक राशि का है,साथ ही चन्द्रमा और लगन से सप्तमेश शनि के होने के कारण तथा शनि का शमशानी राशि में स्थापित होने के कारण जातिका के परिवार के द्वारा शादी के बाद से ही पति को नकारा समझा जाने लगा,इसके साथ ही जातक की अन्तर्बुद्धि भी परिवार के कारणों से खोजी बनी हुयी है,जातिका का समय पर भोजन नही करना शनि की सिफ़्त के कारण लगातार चिन्ता में रहना,पति पत्नी के सम्बन्ध के समय में अपने को ठंडा रखना,जननांग में इन्फ़ेक्सन की बीमारी गंदगी के कारण रहना और सन्तान के लिये या तो असमर्थ होना या भोजन के अनियमित रहने के कारण शरीर में कमजोरी होना भी माना जाता है,इसी के साथ पन्चम शनि के प्रभाव से सप्तम स्थान का आहत होना जब भी कोई घरेलू बात होना या परिवार को सम्भालने की बात होना तो गुपचुप रहना घरेलू कार्यों में वही काम करना जो परिवार से दूरिया बनाते हो,वैवाहिक जीवन को ठंडा बनाने के लिये काफ़ी होते है,शनि का लाभ भाव में भी अपने असर को देना,अर्थात रोजाना के कार्यों में सुबह से ही घरेलू चिन्ताओं का पैदा किया जाना और इन कारणों से होने वाली लाभ वाली स्थिति में दिक्कत आना भी वैवाहिक कारणों के नही चलने के लिये माना जाता है,शनि की दसवीं द्रिष्टि दूसरे भाव में चन्द्रमा पर होने से नगद धन और पति परिवार की महिलाओं से पारिवारिक बातों का बुराई के रूप में बताया जाना भी वैवाहिक कारणों को समाप्त करने के लिये काफ़ी है।
  • वक्री गुरु का सीधा नवम पन्चम का सम्बन्ध शुक्र और बुध से होने से पति के द्वारा पहले किसी अन्य स्त्री से अफ़ेयर का चलाना और बाद मे शादी करना भी एक कारण माना जा सकता है,इस प्रभाव से जो मर्यादा पत्नी की होती है वह अन्य स्त्रियों से काम सुख की प्राप्ति के बाद पति के अन्दर केवल पत्नी मौज मस्ती के लिये मानी जाती है,लेकिन जैसे जैसे पत्नी का ओज घटता जाता है पति का दिमाग पत्नी से हट्ककर दूसरी स्त्रियों की तरफ़ जाना शुरु हो जाता है,इस कारण में अक्सर सन्तान के रूप में केवल पुत्री सन्तान का होना ही माना जाता है,और पुरुष को वैवाहिक जीवन से दूर जाने के लिये यह आकांक्षा भी शामिल होती है कि वह पुत्र हीन है और उसकी पत्नी पुत्र सन्तान पैदा करने में असमर्थ है,शुक्र बुध के एक साथ तुला राशि में चौथे भाव में होने से शादी के बाद भी पति का रुझान अन्य स्त्रियों से होता है।
  • केतु का शनि को बल देना और केतु को सूर्य का बल प्राप्त होना तथा शनि का परिवार में स्थापित होना वैवाहिक जीवन को पारिवारिक न्यायालय से समाप्त करने का कारण तैयार होता है। अष्टम गुरु से दूसरे भाव में राहु के होने से पति के द्वारा बनायी गयी बातों से और झूठे कारण बनाकर अदालती कारण जातिका के लिये बनाये जाते है,राहु के द्वारा शुक्र बुध को अष्टम भाव से देखने के कारण जातिका पर चरित्र के मामले में भी झूठे कारण बनाकर लगाये जाते है.इन कारणों से चन्द्रमा जो राहु से षडाष्टक योग बनाकर विराजमान है,परिवार पर झूठे चरित्र सम्बन्धी आक्षेप सहन नही कर पाता है और विवाह विच्छेद का कारण बनना जरूरी हो जाता है.
इन कारणों को जातिका के द्वारा रोका जा सकता है। उच्च के मंगल की स्थिति के कारण जातिका को कटु वचन बोलने से बचना चाहिये। राहु के मीन राशि में होने से जातिका को जितना डर लगेगा उतना ही ससुराल खानदान उसके ऊपर सवार होगा,और एक दिन इसी डर के कारण जातिका को अपने ससुराल खानदान से दूरिया मिल जायेंगी। जातिका को ससुराल खानदान के हर कार्य में अपने को शामिल करना चाहिये,जो भी कार्य होते है उनके अन्दर अपने को शामिल करने से उसकी जरूरत परिवार में मानी जायेगी। शनि की सिफ़्त को बदलने के लिये नियमित आहार विहार और शरीर के प्रति ध्यान देना चाहिये,भूखे रहने से और अधिक सोचने से वैवाहिक जीवन तो क्या साधारण जीवन भी असम्भव है। अपने पिता परिवार से जो भी रिमोट होने की बात मिलती है उनसे उतना ही लगाव रखना चाहिये जितना एक वैवाहिक स्त्री को रखना होता है। कभी भी अपने पिता परिवार की दादागीरी को अपने पति परिवार में नही बखान करना चाहिये,कोई भी पति अपने ससुराल के सदस्यों के सामने नही झुकना पसंद करता है। अक्सर सूर्य केतु के तीसरे भाव में होने से अधिक चिन्ता करने और लगातार सोचने के कारण चेहरे पर असमय ही झुर्रियां आनी शुरु हो जाती है,इसलिये भी पति का आकर्षण खत्म होता जाता है,पति पत्नी के सम्बन्धो के समय में एक दूसरे के प्रति समर्पित भावना से रहना चाहिये। इन कारणों को तत्वों की पूर्ति से भी दूर किया जा सकता है:-
  • दैनिक दिन चर्या को बदलने के लिये सुबह जल्दी जागकर नित्य कार्यों से निपट कर कुछ समय पूजा पाठ में भी लगाना चाहिये.शक्ति की आराधना करने से भी दिमागी बल में बढोत्तरी होती है.
  • मंगल के उच्च प्रभाव को दूर करने के लिये शनि का रत्न नीलम जो सफ़ेद रंग का हो बायें हाथ की बीच वाली उंगली मे सोने में धारण करना चाहिये.
  • जो भी परिवार की गंदगियां है उन्हे अपने परिवार वालों से नही कह कर खुद के दिमाग से दूर करने की कोशिश करना चाहिये.किसी की गल्ती को आक्षेप विक्षेप से दूर नही किया जा सकता है,उन्हे दूर करने के लिये अपने को सजग रखने की जरूरत होती है.
  • परिवार में धन की जरूरत धन के ही स्थान पर होती है हर जगह पर धन को सामने नही लाना चाहिये और न ही पिता परिवार से प्राप्त वस्तुओं के प्रति अधिक मोह दिखाना चाहिये,जो भी पिता परिवार से मिला है उसे ससुराल परिवार के सदस्यों के प्रति कार्य में लेने से भी सभी लोगों के मन में जातिका के प्रति सहानुभूति बनने लगती है.
  • सूर्य केतु दांत की भी बीमारियां देता है दांतों भी बदबू मारने वाले होते है,कान भी सूखे और खुजलाने वाले होते है आंखों में भी अधिक चिन्ता करने के कारण रोशनी की कमी होने लगती है,इसलिये स्वास्थ्य के प्रति भी ध्यान देना जरूरी होता है।
मई के महिने तक ही अधिक कनफ़्यूजन है और नवम्बर तक की शारीरिक परेशानी को अधिक माना जा सकता है,पति के साथ अन्य रिस्ते को प्यार से छुटाया जा सकता है झल्ला कर या कानूनी कारण को पैदा करने के बाद गृहस्थ जीवन को बिगाडा तो जा सकता है लेकिन जीवन में पति से नफ़रत भी मिलती है.

17 टिप्‍पणियां:

  1. सातवें भाव का मंगल वैवाहिक जीवन के तनाव का कारन हे / गुरु नहीं /चन्द्रमा से सप्तम का गुरु पत्नी में उसके नालायक पति के लिए भी पतिव्रत का कारन होता हे /

    जवाब देंहटाएं
  2. सातवां भाव कालपुरुष के अनुसार शुक्र का ही घर है,यहाँ गुरु शुक्र के रंग में रंगा होता है,जिसे मर्यादा और धर्म का निर्वाह करने की जिम्म्देदारी दी गयी हो वह अगर रसिक स्वभाव का हो जायेगा तो धर्म और मर्यादा भी रसिया बन जायेगी,चन्द्रमा छल है और गुरु सम्बन्ध,अगर दोनो आमने सामने होते है,दिखावा तो साध्वी का होता है पीछे शुक्र मंगल की मानसिक सोच अलग ही होती है.

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रणाम गुरूजी,

    गुरुजी शनि की भूमिका भी तो काफी है ना? क्यूंकी 3 द्रष्टि काम आती पर मंगल ने ही 1 तरह से उसका प्रभाव खराब कर दिया..इसके अलावा 7 द्रष्टि से चंद्र की उच्च राशि और 10 वीं से खुद चंद्र को दूषित कर दिया.. अब 1 बात आप ही समझाइये कि अगर गुरू वक्री न होता तो क्या बात नहीं बिगड़ती? (तब चंद्रमा को बल तो मिलता)

    आशुतोष जोशी

    जवाब देंहटाएं
  4. गुरु जो सम्बन्धो का कारक है किसी भी जीव के आपसी सम्बन्ध के लिये गुरु का सही होना बहुत ही जरूरी है,चन्द्र से मानसिकता को महिने मे साढे सात दिन खराब ही रहती है सूर्य से एक साल में तीन महिने तो खराब ही रहते है लेकिन गुरु से सम्बन्ध बनने के बाद हमेशा के लिये कायम होने वाली बात मानी जाती है.गुरु वक्री का मतलब होता है स्वार्थी भावना,जब तक मतलब रहा तो mistress और जब मतलब खतम हुआ तो खाली stress ही stress बाकी रह जाता है.

    जवाब देंहटाएं
  5. pranam guru g ....mdob 26-9-1980 time 6.30pm plece ghazipur (dob 26-9-1980 time 6.30pm ...meri kundali ka poora vislesan karen ki krpa karen

    जवाब देंहटाएं
  6. guru ji prnaam mera janaam 15-08-1979 ko up ke sonebhadra zile me 7.10 p.m pe huwa hai guru gi mera bhavisya bateyen

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. Manyavar,
    Pranaam
    I am a B Tech E&T Engg.I work as Software Engineer in a top MNC Software company in Bangalore.
    Here are my birth details :
    Date of Birth: 10 February 1981 Tuesday
    Time of Birth: 21:43 (=09:43 PM), Indian Standard Time
    Place of Birth: Bhubaneswar (Orissa), India
    Latitude: 20.13N Longitude: 85.50E
    Gender : Male
    Marital Status : Single
    मेरा प्रेम विवाह होगा या अरेंज्ड विवाह.विवाह कब होगा और वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा
    एक महीना हुआ मंगल की महदशा शुरू हुआ है यह महादशा कैसा रहेगा अच्छी आया बुरी
    Kripaya Batayen,

    Sumit Tripathy

    जवाब देंहटाएं
  9. षडाष्टक योग में बचाव क्या है जिससे तलाक की संभावना रुके

    जवाब देंहटाएं
  10. षडाष्टक योग में बचाव क्या है जिससे तलाक की संभावना रुके

    जवाब देंहटाएं
  11. acharya ji mera name gopal, DOB - 15/07/1984, time 06-20 PM, neemuch (MP), Naukari ko 08 sal hone ke bawjood mere pass itna bank balance nahi hai ki me koi plot bhi kharid saku, kripaya kya rukawat hai evam kya upay hai, batane ka kashth kare please

    जवाब देंहटाएं
  12. Guruji pranaam
    Mera naam sanjay hai
    Dob-10/03/1986
    Time-15:45
    Place- dehradun uttarakhand

    जवाब देंहटाएं
  13. Sarika 7november 1987 7 pm kanpur up
    Guru ji pranaam
    Meri mere pati se patti nahi hai mera divorce kab tak ho jayega kripa kRke jaldi batane ki kripa kare

    जवाब देंहटाएं
  14. Sarika 7november 1987 7 pm kanpur up
    Guru ji pranaam
    Meri mere pati se patti nahi hai mera divorce kab tak ho jayega kripa kRke jaldi batane ki kripa kare

    जवाब देंहटाएं
  15. Sarika 7november 1987 7 pm kanpur up
    Guru ji pranaam
    Meri mere pati se patti nahi hai mera divorce kab tak ho jayega kripa kRke jaldi batane ki kripa kare

    जवाब देंहटाएं
  16. Harshit patel
    Dob 19/11/1989
    Time11:45pm
    Kapadwanj gujarat
    Videsh jana he. Ja sakta hu? Aur ha to akela ja sakta hu ya family k sath

    जवाब देंहटाएं